Títulos de imagen para Alone (Hindi)

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ढूंढ़ रहा हु लेकिन नाकाम हु अभी तक,\nवो लम्हा जिस में तुम याद ना आये,

इन् तरसती निग़ाहों का ख़्वाब है तू, आजा के बिन तेरे बहुत उदास हूँ मैं..!

तुम्हारे बिना रह तो सकती हूँ… मगर.. खुश नहीं रह सकती.!

दो पल भी नहीं गुज़रते तुम्हारे बिन,\nये ज़िन्दगी ना जाने कैसे गुज़ारेंगे!

भूल सा गया हैं बो मुझे , समज नहीं आ रहा की हम आम हो गए उनके लिए या कोई खास बन गया है !

कभी कभी नाराज़गी दूसरों से ज्यादा खुद से होती है |

साजिशों का पहरा होता है हर वक़्त रिश्ते भी बेचारे क्या करें, टूट जाते हैं बिखर कर !

काश ये दिल बेजान होता…न किसी के आने से धडकता…न किसी के जाने से तडपता…!

उनका बादा भी अजीब था – बोले जिन्दगी भर साथ निभाएंगे ,पर पागल हम थे – ये पूछना भूल ही गए के मोहबत के साथ या यादो के साथ !

अधूरी ख़्वाहिश बनकर न रह जाना तुम ….दुबारा आने का इरादा नहीँ रखते हैं हम !

काश ये दिल बेजान होता,\nन किसी के आने से धडकता,\nन किसी के जाने से तडपता…!

पास आकर सभी दूर चले जाते है अकेले थे हम, अकेले ही रह जाते है इस दिल का दर्द दिखाए किसे मल्हम लगाने वाले ही जख्म दे जाते है।

अकेले ही गुज़रती है ज़िन्दगी…\nलोग तसल्लियां तो देते हैं पर साथ नहीं।

जाने क्यों अकेले रहने को मज़बूर हो गए,\nयादों के साये भी हमसे दूर हो गए,\nहो गए तन्हा इस महफ़िल में,\nकि हमारे अपने भी हमसे दूर हो गए।

नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं, कसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नहीं देता !

मेरी मोहबत की मजार तो आज भी वहीं है, बस तेरे ही सजदे की जगह बदल गई..!

बात इतनी है के तुम बहुत दुर होते जा रहे हो…\nऔर हद ये है कि तुम ये मानते भी नही….

तुमने कहा था आँख भर के देख लिया करो मुझे, मगर अब आँख भर आती है तुम नजर नही आते हो।

बेशक तेरे Phone की कोई उम्मीद तो नहीं लेकिन,\nपता नहीं क्या सोचकर, मैं आज भी Number नहीं बदलता.

अब तो खुद को भी निखारा नहीं जाता मुझसे _वे भी क्या दिन थे कि तुमको भी संवारा हमने …?

प्यार था और रहेगा भी..लेकिन बस अब बार बार टूटने की हिम्मत खत्म हो गयी है डर में नही जी सकते के कब कौन बीच रास्ते साथ छोड़ जाए अकेले का सफर कठिन है जानती हूँ पर किसी के साथ रहकर भी तन्हा महसूस करना ज़्यादा बुरा लगता है ????

जो कहते थे मुझे डर है कहीं मैं खो न दूँ तुम्हे, सामना होने पर मैंने उन्हें चुपचाप गुजरते देखा है… !

दिल तो करता हैं की रूठ जाऊँ कभी बच्चों की तरह\nफिर सोचता हूँ कि मनाएगा कौन….?

मुझे ये ‎❤ दिल‬ कि बीमारी‬ ना होती ‎अगर‬ तू इतनी ‪#‎प्यारी‬ ना होती…

तेरी याद में ज़रा आँखें भिगो लूँ,\nउदास रात की तन्हाई में सो लूँ,\nअकेले ग़म का बोझ अब संभलता नहीं,\nअगर तू मिल जाये तो तुझसे लिपट कर रो लूँ।

मत किया कर ऐ दिल किसी से मोहब्बत इतनी , जो लोग बात नहीं करते वो प्यार क्या करेंगे. ..!

जो फ़ुरसत मिली तो मुड़कर देख लेता मुझे एक दफा तेरे प्यार में पागल होने की चाहत मुझे आज भी हे !

सच कहा था किसी ने तन्हाई में जीना सीख लो\nमोहब्बत जितनी भी सच्ची हो साथ छोड़ ही जाती है. |

कितने अनमोल होते है, ये यादों के रिश्ते भी , कोई याद ना भी करे, तो चाहत फिर भी रहती है.!

हजारों महफिलें हैं और लाखों मेले हैं,\nपर जहाँ तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं।

कैसे बनाऊँ तेरी यादों से दूरियां …….\nदो कदम जाकर सौ कदम लौट आती हूँ ..

मुझको मेरे अकेलेपन से अब शिकायत नहीं है।\nमैं पत्थर हूँ मुझे खुद से भी मुहब्बत नहीं है।

बिखरे पल,भीगी पलके और ये तन्हाई है…..कुछ सौगाते है जो मोहब्बत से कमाई है.!

चैन से गुज़र रही थी ज़िन्दगी,और फिर तुम मिल गए !

जब मोहब्बत बे-पनाह हो जाये ना..\nतोह फिर पनाह कही नही मिलती

उसने‬ कहा तुम सबसे ‪‎अलग‬ हो, ‪‎\nसच‬ कहा और कर दिया मुझे सबसे अलग |

बहुत शौक से उतरे थे इश्क के समुन्दर में.. पहली ही लहर ने ऐसा डुबोया कि आज तक किनारा ना मिला.!

तन्हा रहना तो सीख लिया , पर खुश ना कभी रह पायेगे , तेरी दूरी तो सह लेता दिल मेरा, पर तेरे प्यार के बिन ना जी पायेंगे।

पास आकर सब दूर चले जाते हैं,\nअकेले थे हम, अकेले ही रह जाते हैं,\nइस दिल का दर्द दिखाएँ किसे,\nमल्हम लगाने वाले ही जख्म दे जाते हैं।

बहुत भीड हो गई है लोगों के दिलों में…इसलिए आजकल हम अकेले ही रहते हैं…!

आज परछाई से पूछ ही लिया , क्यों चलते हो.. मेरे साथ..उसने भी हंसके कहा ,और कौन है…तेरे साथ !

बस एक भूलने का हुनर ही तो नहीं आता…वरना भूलना तो हम भी बहुत कुछ चाहते हैं…!

माना की मरने वालों को भुला देतें है….सभी …मुझे जिंदा भूलकर उसने कहावत ही बदल दी !

कुछ कह गए, कुछ सह गए, कुछ कहते कहते रह गए..❗️ मै सही तुम गलत के खेल में, न जाने कितने रिश्ते ढह गए..

उनको लगी खरोंच का पता पुरे शहर को है,\nहमारे गहरे जख्म की कहीं चर्चा तक नहीं !!

मै तब भी अकेला नहीं था, नहीं आज भी हु, तब यारो का काफिला था, आज यादो का कांरवा है.!

कुछ तो रहम कर ऐ जिन्दगी हम कौन से यहाँ बार बार आयेंगे !

कैसे गुज़र रही है सब पूछते है ,\nकैसे गुजारता हु कोई नहीं पूछता |

मुस्कुराने की अब वजह याद नहीं रहती, पाला है बड़े नाज़ से मेरे गमों ने मुझे!

कोरा कागज़ था और कुछ बिखरे हुए लफ़्ज़…\nज़िक्र तेरा आया तो सारा कागज़ गुलाबी हो गया…!

मोहबत के सफ़र में नींद ऐसी खो गई,\nहम न सोए रात थक कर सो गई..!

हम तन्हाई में भी तुझसे बिछड़ जाने से डरते है\nतुझे पाना आभी बाकी है और खोने से डरते है |

हमें भी शौक था दरिया -ऐ इश्क में तैरने का, एक शख्स ने ऐसा डुबाया कि अभी तक किनारा न मिला. !

वो मुजे नफ़रत करें या प्यार करें मैं तो एक दीवाना हूँ.

नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं,\nकसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नहीं देता !

उसकी मोहबत पे मेरा हक़ तो नहीं लेकिन ,\nदिल करता है के उम्र भर उसका इंतज़ार करू !

कुछ नहीं लिखने को आज…. न बात , न ज़ज्बात !

याद तो रोज करते है उन्हें ,\nपर उन्होने कभी महसूस ही न किया.. ????

उसकी मोहबत पे मेरा हक़ तो नहीं लेकिन ,\nदिल करता है के उम्र भर उसका इंतज़ार करू !

मुझे इसलिए भी लोग कमज़ोर समझते है ,\nमेरे पास ताक़त नहीं किसी का दिल तोड़ने की…….❤️

दर्द जब हद से ज्यादा बढ़ जाए , तो वो ख़ामोशी का रूप ले लेता है.!

क़ाश कोई ऐसा हो, जो गले लगा कर कहे…!!\nतेरे दर्द से मुझे भी तकलीफ होती है

वो मुझे भूल ही गया होगा,\nइतनी मुदत कोई खफा नहीं रहता.

आज सोचा कि…. कुछ तेरे सिवा सोचूँ ..!!! .अभी तक इसी सोच में हूँ कि क्या सोचूँ ..!

उस दिन चैन तो तुम्हारा भी उड़ेगा\nजिस दिन हम तुम्हे लिखना छोड़ देंगे |

उनको लगी खरोंच का पता पुरे शहर को है, हमारे गहरे जख्म की कहीं चर्चा तक नहीं !

मुझे भी अब नींद की तलब नहीं रही,अब रातों को जागना अच्छा लगता है !

ज़रुरत है मुझे कुछ नए, नफरत करने वालों की,\nपुराने वाले तो अब चाहने लगे हैं मुझे

उनको लगी खरोंच का पता पुरे शहर को है,\nहमारे गहरे जख्म की कहीं चर्चा तक नहीं !!

बहुत याद आते हो तुम , दुआ करो मेरी यादाश्ति चली जाये.!

जो फ़ुरसत मिली तो मुड़कर देख लेता मुझे\nएक दफा तेरे प्यार में पागल होने की चाहत मुझे आज भी हे !

जो रहते हैं दिल में, वो जुदा नही होते, कुछ अहसास लफ़्ज़ों में बयान नही होते.!

अब तो खुद को भी निखारा नहीं जाता मुझसे _वे भी क्या दिन थे कि तुमको भी संवारा हमने …?

मुझे भी अब नींद की तलब नहीं रही,\nअब रातों को जागना अच्छा लगता है…

आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की, लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं।

भूल सा गया हैं बो मुझे ,समज नहीं आ रहा की हम आम हो गए उनके लिए या कोई खास बन गया है !

अब नींद से कहो हम से सुलह कर ले फ़राज़,\nवो दौर चला गया जिसके लिए हम जागा करते थे…!!

ख़ामोशी बहुत कुछ कहती हे कान लगाकर नहीं , दिल लगाकर सुनो…

न जख्म भरे…,\nन शराब सहारा हुई..\nन वो वापस लौटी…\nन मोहब्बत दोबारा हुई…..!!

हर रोज़, हर वक़्त तुम्हारा ही ख्याल ना जाने किस कर्ज़ की किश्त हो तुम

छोड दी हमने हमेशा के लिए उसकी आरजू करना…जिसे मोहब्बत की कद्र ना हो उसे दुआओ मे क्या मांगना.!

तेरी बेरुखी ने छीन ली है शरारतें मेरी..और लोग समझते हैं कि मैं सुधर गया हूँ..!

प्यार करो तो सच्चा…….वरना ‘ALONE ‘ ही अच्छा !

मुझे किसी को मतलबी कहने का कोई हक़ नहीं।\nमैं तो खुद अपने रब को मुसीबतों में याद करता हूँ ।

बिखरे पल,भीगी पलके और ये तन्हाई है…..कुछ सौगाते है जो मोहब्बत से कमाई है. !

दर्द सिर का हो या दिल का,\nदोनों बहुत बुरे होते है????

जिस क़दर उसकी क़दर की हमने,\nउस क़दर बेक़दर हो गए हम।

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